मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

हरियाली की रखवाली मां के हाथ में

जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम पहरिया के पहाड़ में मां अन्नधरी दाई विराजित हैं। करीब 30 एकड़ क्षेत्र में फैल इस पहाड़ में हजारों इमारती पेड़ है, जिसे लोगों के द्वारा नहीं काटा जाता। पहाड़ में लकड़ियां पड़ी रहती हैं और दीमक का निवाला बनती है, मगर लकड़ियों को उपयोग के लिए कोई नहीं ले जाता। यह भी लोगों के बीच धारणा है कि जो भी मां अन्नधरी दाई के पहाड़ पर स्थित इमारती लकड़ी को घर लेकर गया, उस पर मां की कृपा नहीं होती और उस पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है। उसे और उसके परिवार पर आफत आ जाती है। यही कारण है कि पहाड़ पर लकड़ियां सड़ती-गलती रह जाती हैं, लेकिन उसे कोई हाथ नहीं लगाता। इस तरह मां ही हरियाली की रखवाली करती हैं और यह पर्यावरण संरक्षण की दिषा में सार्थक पहल हो रही है। साथ ही इससे समाज में भी संदेष जाता है, क्योंकि आज की स्थिति में जिस तरह जंगल काटे जा रहे हैं, वहीं पहरिया में जो लोगों के मन भावना है, उससे निष्चित ही पर्यावरण संरक्षण की दिषा में कार्य जरूर हो रहा है। जिला मुख्यालय जांजगीर से 20 किमी तथा बलौदा विकासखंड से ग्राम पहरिया की दूरी करीब 10 किमी है। पहरिया, चारों ओर से पहाड़ों और हरियाली से घिरा हुआ है, लेकिन मां अन्नधरी दाई जिस पहाड़ में स्थित है, वह जमीन तल से काफी उपर है। करीब 100 फीट उपर पहाड़ पर हजारों की संख्या में छोटे-बड़े इमारती पेड़ हैं, जिससे हरियाली तो फैली हुई है। साथ ही पेड़ों की कटाई नहीं होने से पर्यावरण संरक्षण में यह सार्थक साबित हो रहा है। यही कारण है कि पहरिया समेत इलाके के लोगों में मां अन्नधरी दाई के प्रति असीम श्रद्धा है और साल के दोनों नवरात्रि में यहां ज्योति कलष प्रज्जवलित भक्तों द्वारा कराए जाते हैं। इसके अलावा मां की महिमा के बखान सुनकर दूर-दूर से लोग पहाड़ीवाली मां अन्नधरी दाई के दर्षन के लिए पहुंचते हैं। ग्राम पहरिया के दरोगा राम का कहना है कि लोगों में मां के प्रति आस्था की जो भावना है और पेड़ों के संरक्षण के प्रति जो लोगों में जागरूकता बरसों से कायम है, वह निष्चित ही समाज के अन्य लोगों के लिए एक अच्छा संदेष ही माना जा सकता है, क्योंकि जहां जंगल दिनों-दि कट रहे हैं और पर्यावरण के हालात बिगड़ रहे हैं, वहीं ग्राम पहरिया में मां अन्नधरी की महिमा की खाति जो परिपाटी चल रही है, वह काबिले तारीफ है और इसे अन्य लोगों को भी आत्मसात करने की जरूरत है। यदि इस तरह पहल अन्य जगहों में होने लगे तो वह दिन दूर नहीं, जब पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई में कमी जरूर आ जाएगी। अंत में मां अन्नधरी दाई को प्रणाम और लोगों की आस्था को सलाम। निष्चित ही यह समाज के लिए प्रेरणादायी अवसर है।

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