बुधवार, 10 नवंबर 2010

ईट से बना खरौद का ईंदलदेव

जिला मुख्यालय जांजगीर से 55 किमी की दूरी पर छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात लक्ष्मणेश्वर की नगरी खरौद स्थित है। इस धार्मिक नगरी में भगवान लक्ष्णेश्वर का मंदिर है। यहां के लक्षलिंग में एक लाख छिद्र हैं और यहां महाशिवरात्रि समेत तेरस और सावन मास मंे मेला लगता है तथा श्रद्धालुओं की संख्या भी हजारों की संख्या में जुटती है। खरौद में शबरी माता का भी मंदिर है, इसकी प्राचीन पहचान है। मंदिर के द्वार पर अद्धनारीश्वर की प्रतिमा है, जिस देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। पर्यटक, खरौद में पुरातात्विक धरोहर की एक झलक देखने की तमन्ना हर किसी में होती है। भगवान लक्ष्मणेश्वर की ख्याति प्रदेश के अलावा दूसरे स्थानों में भी है। खरौद के मांझापारा में स्थित ईंदलदेव का मंदिर बरसों से लोगों का आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पुरातत्व के जानकार इस मंदिर को 6 वीं शताब्दी का बताते हैं। इस मंदिर को जांजगीर-चांपा जिले का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। ईंदलदेव मंदिर में स्थापत्यकला की अमिट छाप देखने को मिलती है। मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर का द्वार पिछले हिस्से में है और मुख्य द्वार के दोनों ओर मां गंगा की प्रतिमा बनी हुई है, वह भी ईट से। खास बात यह भी है कि मंदिर में प्र्रतिमा विराजित नहीं है। करीब 40 फीट उंचे ईंदलदेव मंदिर के चारों ओर ईट से आकर्षक कलाकृतियां बनाई गई हैं, कहीं गुंबद का निर्माण किया गया है तो कहीं, देवी-देवताओं के चित्रों को भी आकर्षक ढंग से उकेरा गया है। मंदिर की महत्ता और प्राचीनता को देखते हुए न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी पुराविद और इतिहासकार शोध के लिए आते हैं। विदेशों से भी पर्यटक मंदिर की बनावट देखने आ चुके हैं और ईट से बने ईंदलदेव मंदिर की खासियत को देखकर वे भी हतप्रभ रहे हैं। मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास है और इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए कुछ प्रयास हुए हैं, लेकिन जिस तरह से प्राकृतिक आपदा के कारण ईट से बनी कलाकृति मिट रही है, जिसे बचाए और संरक्षित किए जाने की जरूरत है। अंधड़ और बारिष के प्रभाव में बरसों से मंदिर के रहने के कारण चारों ओर बनी स्थापत्यकला की बेजोड़ कलाकृति और चित्र प्रभावित हो रहे हैं। मंदिर की विरासत को कायम रखने प्राकृतिक आपदा के प्रभाव से निपटने पुराविद विभाग को ठोस पहल करना चाहिए। एक दशक पहले ईंटलदेव मंदिर की हालत काफी बिगड़ गई थी। बाद में पुरातत्व विभाग ने सुध लेते हुए मंदिर का कायाकल्प किया, लेकिन फिर भी मंदिर की दीवारों में बनी बेजोड़ कलाकृति को बचाने की कवायद आगामी दिनों में भी जरूरी है। पुरातत्व के जानकार डा. नन्हें प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि ईंदलदेव मंदिर की प्राचीनता के कारण इसके बारे में लगातार शोध कार्य हो रहे हैं और ईट से बने होने के कारण यह स्थापत्यकला की दृष्टि से जिले ही नहीं, वरन प्रदेश की बेजोड़ कृति है, जिसकी बनावट देखते ही बनती है।