सोमवार, 16 जून 2014

देश के लिए ‘कर्ज’ चुकाने का शुरूर, खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

भारतीय रिजर्व बैंक के आर्थिक आय-व्यय के सर्वे में खुलासा हुआ है कि भारत के हर नागरिक पर 33 हजार का कर्ज है और जन्म लेते ही हर व्यक्ति 33 हजार रूपये के कर्ज तले दबा रहता है। इतना जरूर है कि कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष तौर पर कर्ज नहीं लिया रहता, मगर देश के नागरिक होने के कारण हर व्यक्ति पर स्वाभाविक तौर पर ‘कर्ज’ होना, माना जा सकता है।
जिले के विकास मिश्रा ने देष हित में अपने कंधे से कर्ज उतारने का प्रयास शुरू किया है और उन्होंने प्रधानमंत्री राहत कोष में 33 हजार का चेक भी भेजा है। फिलहाल, इस दिषा में किसी तरह की पहल नहीं हो सकी है। यही वजह है कि विकास मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और इस मसले पर विचार करने, कोर्ट में रिट पिटीषन अपने अधिवक्ता के माध्यम से दायर किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई सर्वे रिपोर्ट के मीडिया में प्रकाषित होने के बाद, जांजगीर इलाके के सिवनी गांव निवासी विकास मिश्रा ने तय किया कि प्रत्येक व्यक्ति पर 33 हजार का जो कर्ज बताया जा रहा है, उसे वह देश हित में अपने कंधे से उतारेगा। विकास ने दो साल पहले यानी 09 जनवरी 2012 को भारतीय स्टेट बैंक जांजगीर शाखा से 33 हजार रूपये का चेक प्रधानमंत्री राहत कोष के नाम से जारी कर कलेक्टोरेट में आवदेन के साथ जमा किया है। उसी दौरान एक पत्र के माध्यम से विकास को बताया गया कि उनके आवेदन और चेक को भेज दिया गया है, लेकिन इतना वक्त गुजरने के बाद भी अभी तक प्रधानमंत्री राहत कोष में भेजे गए चेक के बारे में कुछ पता नहीं चल सका है।
विकास मिश्रा का यह पहला प्रयास नहीं था, इससे पहले विकास ने देष के कई नेताओं समेत वित्त मंत्री और राष्ट्रपति को चेक भेजा, लेकिन कुछ नेताओं ने जवाब दिया और कुछ ने जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। विकास को राष्ट्रपति और वित्तमंत्री का भी जवाब नहीं मिला और न ही, चेक वापस आया। इस दौरान विकास ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, तत्कालीन केन्द्रीय राज्यमंत्री डॉ. चरण दास महंत, क्षेत्रीय सांसद कमला देवी पाटले और जिले के तत्कालीन प्रभारीमंत्री दयालदास बघेल को पत्र भेजकर पहल करने की फरियाद की। इसमें मोतीलाल वोरा का जवाब आया और उन्होंने विकास को प्रधानमंत्री राहत कोष में चेक भेजने की सलाह दी।
कुछ लोगों ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रिपोर्ट जारी करने के कारण चेक आरबीआई को भेजने की सलाह दी तो विकास ने 33 हजार का चेक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नाम से प्रेषित किया। खास बात यह है कि विकास के पत्र का जवाब देते हुए आरबीआई ने विकास मिश्रा के प्रयास की सराहना की। हालांकि, आरबीआई ने कर्ज मुक्ति के लिए भेजे जा रहे चेक के लिए उपयुक्त कार्यालय से पत्राचार करने की बात कही।
फिलहाल, विकास मिश्रा का मकसद अधूरा है, परंतु वह जी-जान से देष हित में अपने कंधे से ‘कर्ज’ उतारने की कोषिष में लगा है। विकास के मन में एक तरह से शुरूर सवार है कि जैसे भी करके हिन्दुस्तान के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उन्हें ‘कर्ज’ उतारना ही है। विकास, इसे अपना सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य मानकर अनवरत कर्ज मुक्ति के लिए लगे हुए हैं।

रिपोर्ट ने विकास को झकझोरा...
देष में नागरिकों पर कर्ज की रिर्पार्ट कई बार मीडिया में आती रही है, लेकिन यही रिपोर्ट विकास मिश्रा ने देखी और उन्हें इस रिपोर्ट ने झकझोर कर रख दिया और उन्होंने ठाना कि वे अपने हिस्से का कर्ज उतारेगा।
विकास, अफसरों के दफ्तरों के चक्कर काट रहा है कि वह उस ऋण से उऋण होना चाहता है, जिसे उसने खुद उधार नहीं लिया है। देश का एक जिम्मेदार बासिंदा होने के कारण उन्होंने तय किया कि वह हर हाल में अपना फर्ज निभाएगा और देश के ‘कर्ज’ को खत्म करने बीड़ा उठाया है। इस तरह वह दो साल से हर कहीं चक्कर काट रहा है, किन्तु उसका 33 हजार का चेक लेने, कोई तैयार नहीं है।
मीडिया में रिपोर्ट देखने के बाद विकास ने कर्ज उतारने का मन बनाया। वे तय नहीं कर पा रहे थे, कर्ज उतारने के लिए राषि किसे भेजा जाए ? इसके बाद विकास ने कलेक्टर से भेंट की और भारत सरकार को भेजने के लिए 33 हजार का चेक सौंप दिया। इस दौरान विकास ने सीएम डॉ. रमन सिंह से भी मुलाकात की थी, किन्तु अब भी विकास को कर्ज मुक्ति का इंतजार है। विकास ने कई जगहों पर चेक भेजा, लेकिन अधिकांष वापस आ गए।
दूसरी ओर कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी मंशा को नहीं समझ रहे हैं। विकास मिश्रा के इस तरह के नायाब प्रयास की प्रशंसा ही की जा सकती है, क्योंकि इस तरह की कोशिश देश भर में हो और हर नागरिक इसी मंशा से काम करे तो देश, कर्ज से मुक्त हो जाएगा। विकास मानते हैं कि देष में आने वाले दिनों में व्यापक असर होगा, क्योंकि बहुत से लोग हैं, जो देष में कर्ज उतारने के लिए आतुर हैं।
यह सही है कि विकास की कोषिष यदि रंग लाती है तो सिवनी गांव के अलावा इलाके के और भी युवा हैं, जो चाहते हैं कि देष के लिए वे भी अपने कंधे से कर्ज उतारेंगे। साथ ही ये युवा, विकास के प्रयास की सराहना करते नहीं थकते और उन्हें विष्वास है कि आने वाले दिनों में विकास को सफलता मिलेगी।
देश का कर्ज उतारने का शुरूर लिए, विकास मिश्रा भटक रहे हैं, उन्हेें समझ भी नहीं आ रहा है, वे क्या करें ? बस, वे खुद को कर्ज से मुक्त करना चाहते हैं। विकास मिश्रा कहते भी हैं कि इस तरह के प्रयास वे कर रहे हैं, इसके बाद उन्हें आशा है कि और भी लोग आगे आएंगे।

रिट पिटीषन दायर, विचाराधीन
विकास मिश्रा पूरे दमखम के साथ देश के नाम खुद के कर्ज को उतारने में हर स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। इतना जरूर है कि उन्हें किसी प्रशासनिक अधिकारी या जनप्रतिनिधि का सहयोग नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि विकास मिश्रा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विकास ने ‘कर्ज मुक्ति’ के लिए अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में रिट-पिटीषन दायर किया है। फिलहाल, मामला विचाराधीन है।
ये अलग बात है कि अफसर, विकास मिश्रा के सहयोग के लिए सीधे तौर पर आगे नहीं आ रहे हैं, मगर देश के प्रति उनके समर्पण और जुनून की तारीफ किए बगैर नहीं पा रहे हैं। आम लोग भी उनकी कोशिश की सराहना कर रहे हैं और इस तरह की मिसाल, देश के हर नागरिक को पेश करने की बात भी उठने लगी है। छोटे से गांव सिवनी से शुरू हुआ यह प्रयास, दिल्ली के गलियारों तक पहुंच गया है।
विकास को अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार है। विकास को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पूरा भरोसा है और उन्हें आस भी है कि देष हित में कोई बड़ा निर्णय होगा। उनके मुताबिक, देष का यह अनूठा मामला है। अपने आप में देष का यह पहला प्रयास है।
विकास मिश्रा कहते हैं कि यह प्रयास, देष के नागरिकों को संदेष देने का है और देष को कर्ज से मुक्त किया जाए। सरकार गलत नीतियां बना रही है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। देष की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। देष को सुचारू तौर चले, बस यही प्रयास है। देष की 50 फीसदी से अधिक आबादी गरीब है, ऐसे में सरकार ऐसी नीतियां बनाए, जिससे देष का कोई भी नागरिक कर्जदार न हों।
विकास मिश्रा ने जिस तरह से अनूठा प्रयास किया है और करोड़ों भारतीयों को जोड़ने की कोशिश हुई है। देश के ‘कर्ज’ को चुकाने की सोच ने, टैक्स चोरी करने वाले उन लोगों पर तमाचा जड़ा है, जो देश हित को दरकिनार कर विकास कार्य को अवरोध करने के लिए टैक्स चोरी करते हैं। निश्चित ही इस पहल के बाद लोगों में जागरूकता आएगी और देश के प्रति सेवा भावना भी जागृत होगी।

परिवार और दोस्तों से मिला संबल
देष के लिए कर्ज से मुक्ति के लिए की जा रही विकास मिश्रा की कोषिष को परिवार के समर्थन से भी बल मिल रहा है। विकास द्वारा कर्ज चुकाने के कार्य में परिवार के सभी लोग साथ हैं, वहीं विकास के दोस्तों ने भी उसका उत्साह हमेषा बढ़ाया है।
देष की आबादी करीब ढाई अरब पहुंच गई है और भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से पता चलता है कि देष का प्रत्येक नागरिक 33 हजार हजार के कर्ज से डूबा है। ये अलग बात है कि प्रत्यक्ष तौर पर देष के किसी व्यक्ति ने खुद कर्ज नहीं लिया है, किन्तु देष में जो कर्ज है, वह कहीं न कहीं, अवाम पर ही बोझ है। ऐसे में कोई इन ढाई अरब लोगों में से निकलकर अपने कंधे से देष के लिए कर्ज उतारने के बारे में सोचे तो, इस मंषा का स्वागत होना चाहिए।
विकास मिश्रा ने दो साल पहले आरबीआई की रिपोर्ट देखकर देष हित में खुद के कर्ज को उतारने का ठाना है और वह इसमें कटिबद्ध भी नजर आ रहा है। विकास को उसके परिवार के लोगों को भरपूर सहयोग मिल रहा है। यही कारण है कि बिना थके-बिना रूके, पूरे उत्साह से कर्ज मुक्ति की कोषिषों में कोई कमी नहीं कर रहे हैं। यहां तक विकास ने मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दिया है।
विकास बताते हैं कि परिवार में चार सदस्य हैं, कर्ज के बारे में बताया तो सभी लोगों ने कर्ज मुक्ति का समर्थन किया। सभी चाहते हैं कि देष के नाम पर कर्ज उतारने का प्रयास जारी रहे।
विकास के छोटे भाई ओमप्रकाष मिश्रा कहते हैं कि परिवार का पूरा सहयोग है और वे मदद भी कर हैं। उन्हें अफसोस है कि देष हित में किए जा रहे प्रयास को भी न तो अफसर मदद कर रहे हैं और न ही, जनप्रतिनिधि। 
विकास मिश्रा ने निष्चित एक बेहतर प्रयास किया है। अब देखने वाली बात होगी कि देश के नाम ‘कर्ज’ को उतारने के लिए यह कारवां, और कितना आगे बढता है। इतना जरूर है कि विकास मिश्रा ने अपने दायित्व का परिचय तो दे दिया है, अब बारी हम सब की है।

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